अपने पिछले ब्लॉग "बदलती परिभाषाएं" को दोबारा पड़ा मैंने तो लगा कही जयादा तो नही मांग रहा हूँ मैं अपने आप से आप सब से... ? पर फ़िर लगा की
जरूरत तो सागर की ही हैं मुझे. तुम बूँद डाल दो मेरा सागर भर जाएगा ....
तैरना तुझे आता हैं न मुझे, इस डूबते को तिनके का सहारा दे दो शायद ये बच जाएगा..
अपनी फरियाद को चंद पंकितओं मैं लिखता हूँ !
आओ मिलकर कसम ले के अपने हिस्से की इमानदारी को मरने नही देंगे अपनी रगों के खून को जमने नही देंगे
अब बहुत हुआ मौत का तांडव अब अपने बच्चो को सडको पर मरने न देंगे..
आप सतर्क रहे,बने हिस्सा भारत के सुरक्षा बलों का, कोई अपरिचित कोई संदिध बच नही सकता हमारी नजरो से.....सोंचे अगर आपने जिम्मा ले लिया भारत की सुरक्षा का तो किस सेना, किस पुलिस, किस एजेन्सी मैं एक अरब सिपाही हैं.......
अपनी ताकत को पहचाने आगे आए और अपने घर को बचाए....इन धमाको मैं कोई देश नही उजड़ता हैं उजड़ता हैं तो कोई आम घर, कोई सरकार नही मरती मरता हैं तो कोई आम आदमी.....
आपकी सुरक्षा आपके अपने हाथ मैं हैं ....इन दहशत गर्दो को हर तरफ़ खोफ दिखेगा उस दिन..जब आप जागेगे मैं जागूँगा हम सब एक साथ अपनी रक्षा के लिए खड़े होगे......
सन 47 मैं कोई सरकार नही आई थी आजाद कराने....कोई पुलिस नही थी हमारे पास कोई सेना नही थी हमारी....फ़िर भी भाग खड़े हुए थे अंग्रेज.....
अब वक्त आ गया हैं .....जागो फ़िर देखना भगत, गाँधी फ़िर आयेंगे फ़िर मेरा देश फ़िर सोने की चिडिया होगा और तब हमारी भारत माँ वापस आकर हमे गोद मैं लेगी......
और तब हवा मैं फ़िर गूंजेंगे वो बोल सारे जहा से अच्हा हिंदुस्तान हमारा........और हम फ़िर सबका सर गर्व से ऊंचा होगा.....
कुछ आशावादी
कमल और विनोद
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4 comments:
जरूरत तो सागर की ही हैं मुझे. तुम बूँद डाल दो मेरा सागर भर जाएगा ....
ek-ek bund is jazbe ko puri kar jayegi,hindustaani hain hum , ganga yahin utarti hai,to khwaahishon ke saagar kaise khaali rah jayenge
Sukriya Rashmi ji
Inhi aashayo ke sath ladai shuru ki hain maine.
acha likha hai kamal...magar yeh ehsas usi aam admi ke man main aana zaroori hai jis din a gaya us din koi dhamaka nahin hoga aur koi shahar nahin jalega.
Vichaaron ki sunder abhivyakti!...ek ek pankti dil ko chhoo leti hai!
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