Saturday, July 26, 2008

बदलती परिभाषाएं

आज मन नही लग रहा जब मुझे मेरे भाइयों को "कायर हिंदुस्तान कायर हम "पर कायर बुलाया गया तो इस आह्वान ने मजबूर कर दिया मुझे आतम मंथन करने पर की अचानक से कहा गए मेरे दिल मैं बसे हुए भगत सिंघ कहा गया वो उधम सिंघ जिन्होंने अपनी भारत माँ के आँचल पर हाथ लगाने वाले अंग्रेजो के सीने मैं अपनी मतार्भक्ति की मोहर लगा दी थी.और आज तार तार कर दिया उस माँ का आँचल कुछ लोगो ने और हमने क्या कहा "Oh shiitt" , "Damn it " यह तो हद हैं और बस कुछ नही. मानता हूँ वो वक्त और था तब बात कुछ और थी पर आज मुझे तो लगता हैं की वक्त आ गया हैं आज वो बात आ गई हैं. मेरे आतम मंथन से निकले कड़वे विष ने मुझे अहसास कराया की मेरे दिल मैं बसे उन मतवालों की छवि एकदम से धूमिल नही हुई वो तिल तिल कर कश्मीर मैं मरी हैं, कभी घायल हुई हैं मुंबई की लोकल मैं, कभी आसाम मैं मरी गई हैं, कभी भगवान के घर मैं घुस के चोटें पहुचाई हैं तो कभी मज्सिद के अन्दर रुलाई गई हैं.
और इस तरह धीरे धीरे करके हम कायर बन गए हैं .....विनोद का कहना ग़लत नही हैं की हम कायर हैं.और शायद वो दिन दूर नही "जब सारे जहाँ से" के बोल इकबाल कुछ ऐसे लिख दे......कायर हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा हमारा.....सारे जहाँ से कायर ....

छुप कर बेठी थी वो आँचल भी था उसका तार तार..
मेरे नमन पर चोंक गई थी वो कुछ सहम गई थी वो

परिचय पूछने पर आँखों मैं आंसू की एक बूँद थी और होठो पर उदासी भरी मुस्कराहट
बेबसी थी चेहरे पर उसके और माथे पर थकावट .

मैंने फ़िर कहा माते अपना परिचय दीजिये तब वो बोली थी.
मैं जननी हूँ महाराणा प्रताप की, मैं माँ हूँ भगत सिंघ, गाधी और सुभाष की

आगे बढ कर मैंने जब उसके चरण छुए तो वो पीछे हट गई,
मैंने कहा माँ अपने एक और पुत्र का प्रणाम स्वीकार करो मुझे अपने माम्त्य से तृप्त करो

वो वोली नही तुम मेरे पुत्र नही हो सकते तुम जैसे कायर मेरे बेटों के भाई नही हो सकते.
तुम अपनी कायरता से उनका ना अपमान करो और एक हिन्दी होने का दंभ न भरो

कहाँ थे तुम जब मेरे आँचल को चंद लोग तार तार कर रहे थे..
कहाँ थे जब मेरे सीने पर बिजली गिरी थी.
कहाँ थे जब तेरे भाइयों का खून बहा था
कहाँ थे तुम कहाँ थे तुम

जाओ मैं अस्वीकार करती हूँ तुम जैसे पुत्रों को जिनके लिए स्वयम सर्वो परी हैं
आज एक प्रतिज्ञा मैं लेती हूँ की जब तक मुक्त नही हो तुम मेरे मातर ऋण से
जब तक मेरे आँचल को धो न दो इन देश द्रोहियों के लहू से .

मैं आशीर्वाद की छाया से भी सुसजित न करुँगी जब तक
एक भाई भी तेरा असुरक्षित हो जब तक

हाँ मेरे बेटे कायर है हाँ मेरे बेटे कायर हैं....
और छिप गई फ़िर किन्ही अंधेरो मैं जाकर
और छिप गई फ़िर किन्ही अंधेरो मैं जाकर....

:भारत माँ का एक अस्वीकारा हुआ कायर बेटा

12 comments:

Sajeev said...

kamal bhai,
नए ब्लॉग की बधाई, बहुत ही सराहनीय प्रयास, सक्रिय लेखन से हिन्दी चिट्टा जगत को समृद्ध करें....
आपका मित्र -
सजीव सारथी
9871123997
www.podcast.hindyugm.com

समयचक्र said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है .
महेंद्र मिश्रा
समयचक्र

jasvir saurana said...

ut badhiya likha hai jari rhe.
aap apna word verification hata le taki humko tipani dene me aasani ho.

रश्मि प्रभा... said...

aane ke saath satya ki udghoshna,
lalkaar, hikaarat......
bahut badhaai ,
isi chetna ki aawshyaktaa hai....

Unknown said...

Aapke Sabke Utsahah vardan ke liye Dhanyawad.
Aasha karta hoon ki aapko kuch or achi rachnaye de paun.
Jo Bharat main chal raha hain is vishay main aapke vichar bhi mile to acha lagega.
aasha karta hoon ki blog par mulakaat hoti rahegi.

Kamal Mudgal

Aruna Kapoor said...

Aapaka yeh post bahut hi sarahneeya hai!...aage ka intejaar rahega!

Amit K Sagar said...

स्वागत है. सच्म्कुह अच्छा लिखा है आपने. आगे भी उम्मीद. लिखते रहिये.
---
यहाँ भी पधारे;
उल्टा तीर

jigyasa said...

dhamakedar entry ke liye bahut bahut badhai....likhte rahiye hamesha.

Unknown said...

Thanks Jigyasa
Aapka Blog bhi pada Good.

Kamal Mudgal

सरस्वती प्रसाद said...

sahi prayaas jagrit karne ka,
behtareen rachna

Mandeep said...

Welcom Sir, Hope to hear more from you.

pankaj said...

hame sachmuch badalna hoga hum hi apne aap ko daba rahe, hai koi bahar se nahi aya hum khud ko mita rahe hai, dekh bhagat, subhas, chander or gandhi aansu baha rahe hai, ye kaun sa desh hai ye kaun log hai jo hamari tasviro per mala cadha rahe hai