Sunday, July 27, 2008

कुछ आशाएं

अपने पिछले ब्लॉग "बदलती परिभाषाएं" को दोबारा पड़ा मैंने तो लगा कही जयादा तो नही मांग रहा हूँ मैं अपने आप से आप सब से... ? पर फ़िर लगा की
जरूरत तो सागर की ही हैं मुझे. तुम बूँद डाल दो मेरा सागर भर जाएगा ....
तैरना तुझे आता हैं न मुझे, इस डूबते को तिनके का सहारा दे दो शायद ये बच जाएगा..

अपनी फरियाद को चंद पंकितओं मैं लिखता हूँ !
आओ मिलकर कसम ले के अपने हिस्से की इमानदारी को मरने नही देंगे अपनी रगों के खून को जमने नही देंगे
अब बहुत हुआ मौत का तांडव अब अपने बच्चो को सडको पर मरने न देंगे..

आप सतर्क रहे,बने हिस्सा भारत के सुरक्षा बलों का, कोई अपरिचित कोई संदिध बच नही सकता हमारी नजरो से.....सोंचे अगर आपने जिम्मा ले लिया भारत की सुरक्षा का तो किस सेना, किस पुलिस, किस एजेन्सी मैं एक अरब सिपाही हैं.......
अपनी ताकत को पहचाने आगे आए और अपने घर को बचाए....इन धमाको मैं कोई देश नही उजड़ता हैं उजड़ता हैं तो कोई आम घर, कोई सरकार नही मरती मरता हैं तो कोई आम आदमी.....
आपकी सुरक्षा आपके अपने हाथ मैं हैं ....इन दहशत गर्दो को हर तरफ़ खोफ दिखेगा उस दिन..जब आप जागेगे मैं जागूँगा हम सब एक साथ अपनी रक्षा के लिए खड़े होगे......
सन 47 मैं कोई सरकार नही आई थी आजाद कराने....कोई पुलिस नही थी हमारे पास कोई सेना नही थी हमारी....फ़िर भी भाग खड़े हुए थे अंग्रेज.....
अब वक्त आ गया हैं .....जागो फ़िर देखना भगत, गाँधी फ़िर आयेंगे फ़िर मेरा देश फ़िर सोने की चिडिया होगा और तब हमारी भारत माँ वापस आकर हमे गोद मैं लेगी......
और तब हवा मैं फ़िर गूंजेंगे वो बोल सारे जहा से अच्हा हिंदुस्तान हमारा........और हम फ़िर सबका सर गर्व से ऊंचा होगा.....


कुछ आशावादी
कमल और विनोद

Saturday, July 26, 2008

बदलती परिभाषाएं

आज मन नही लग रहा जब मुझे मेरे भाइयों को "कायर हिंदुस्तान कायर हम "पर कायर बुलाया गया तो इस आह्वान ने मजबूर कर दिया मुझे आतम मंथन करने पर की अचानक से कहा गए मेरे दिल मैं बसे हुए भगत सिंघ कहा गया वो उधम सिंघ जिन्होंने अपनी भारत माँ के आँचल पर हाथ लगाने वाले अंग्रेजो के सीने मैं अपनी मतार्भक्ति की मोहर लगा दी थी.और आज तार तार कर दिया उस माँ का आँचल कुछ लोगो ने और हमने क्या कहा "Oh shiitt" , "Damn it " यह तो हद हैं और बस कुछ नही. मानता हूँ वो वक्त और था तब बात कुछ और थी पर आज मुझे तो लगता हैं की वक्त आ गया हैं आज वो बात आ गई हैं. मेरे आतम मंथन से निकले कड़वे विष ने मुझे अहसास कराया की मेरे दिल मैं बसे उन मतवालों की छवि एकदम से धूमिल नही हुई वो तिल तिल कर कश्मीर मैं मरी हैं, कभी घायल हुई हैं मुंबई की लोकल मैं, कभी आसाम मैं मरी गई हैं, कभी भगवान के घर मैं घुस के चोटें पहुचाई हैं तो कभी मज्सिद के अन्दर रुलाई गई हैं.
और इस तरह धीरे धीरे करके हम कायर बन गए हैं .....विनोद का कहना ग़लत नही हैं की हम कायर हैं.और शायद वो दिन दूर नही "जब सारे जहाँ से" के बोल इकबाल कुछ ऐसे लिख दे......कायर हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा हमारा.....सारे जहाँ से कायर ....

छुप कर बेठी थी वो आँचल भी था उसका तार तार..
मेरे नमन पर चोंक गई थी वो कुछ सहम गई थी वो

परिचय पूछने पर आँखों मैं आंसू की एक बूँद थी और होठो पर उदासी भरी मुस्कराहट
बेबसी थी चेहरे पर उसके और माथे पर थकावट .

मैंने फ़िर कहा माते अपना परिचय दीजिये तब वो बोली थी.
मैं जननी हूँ महाराणा प्रताप की, मैं माँ हूँ भगत सिंघ, गाधी और सुभाष की

आगे बढ कर मैंने जब उसके चरण छुए तो वो पीछे हट गई,
मैंने कहा माँ अपने एक और पुत्र का प्रणाम स्वीकार करो मुझे अपने माम्त्य से तृप्त करो

वो वोली नही तुम मेरे पुत्र नही हो सकते तुम जैसे कायर मेरे बेटों के भाई नही हो सकते.
तुम अपनी कायरता से उनका ना अपमान करो और एक हिन्दी होने का दंभ न भरो

कहाँ थे तुम जब मेरे आँचल को चंद लोग तार तार कर रहे थे..
कहाँ थे जब मेरे सीने पर बिजली गिरी थी.
कहाँ थे जब तेरे भाइयों का खून बहा था
कहाँ थे तुम कहाँ थे तुम

जाओ मैं अस्वीकार करती हूँ तुम जैसे पुत्रों को जिनके लिए स्वयम सर्वो परी हैं
आज एक प्रतिज्ञा मैं लेती हूँ की जब तक मुक्त नही हो तुम मेरे मातर ऋण से
जब तक मेरे आँचल को धो न दो इन देश द्रोहियों के लहू से .

मैं आशीर्वाद की छाया से भी सुसजित न करुँगी जब तक
एक भाई भी तेरा असुरक्षित हो जब तक

हाँ मेरे बेटे कायर है हाँ मेरे बेटे कायर हैं....
और छिप गई फ़िर किन्ही अंधेरो मैं जाकर
और छिप गई फ़िर किन्ही अंधेरो मैं जाकर....

:भारत माँ का एक अस्वीकारा हुआ कायर बेटा